एक माँ की कहानी बेटे की जुबानी

जैसा कि है हम सबको पता है कि परिवार में बहुत सारे सदस्य होते हैं। सभी  सदस्यों के  मिलने से एक संपूर्ण परिवार बनता है. इस परिवार में माँ  बाप की अहम भूमिका होती है.परिवार में सभी सदस्य Different-Different mind  के होते हैं. इसमें जो माँ की भूमिका होती है. उन  सबसे अलग होती है. माँ इस परिवार में हर किसी का ख्याल रखती है. और बिना स्वार्थ के प्यार लुटाते रहती है यह उस समय की बात है. जब मैं छोटा था छोटा तो था ही परिवार में भी सबसे छोटा सदस्य था सब लोग मुझे बहुत प्यार करते थे कोई कहीं से भी आता था प्प्यार जताने के लिए चूम लेता या मेरे बालों को खींच कर चला जाता, चूमने  की बात तो ठीक, पर अगर मेरी माँ के सामने मेरे पाल को कोई खींचता तो उसकी खैर नहीं। माँ उसे भला-बुरा सुनाती थी प्यार से बोलती थी.

अगर आइंदा किसी को ऐसे प्यार करना हो तो मेरे बेटे से प्यार ना करें मैं अकेली काफी हूँ.  संसार की सारी खुशियां देने के लिए उस समय मेरे परिवार में बहुत गरीबी थी.  मेरी माँ पड़ोसियों से उधार चावल दाल मांग कर लाती थी तब हम लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब होती थी.  माँ कभी कभी खाती थी कभी दूसरों को खाना खिलाते खिलाते सो जाती थी और तड़के जाकर काम पर लग जाती, हमारे पास भोजन की इतनी कमी थी कि अगर खाते-खाते भोजन का एक दाना भी खाली से बाहर गिर जाता तो, उसे भी उठा कर खा जाते मैं परिवार में सबसे छोटा होने के कारण मेरी माँ मुझे हमेशा अपने पास ही लेकर सोती थी.

मेरी माँ मुझे ऐसे अपनी पेट में चिपका कर सोती जैसे एक चिड़िया अपने चूजे को अपनी पंखों के अंदर छिपा कर रखती है . जब मुझे ठंडी लगती, तो मेरे बोलने से पहले माँ को महसूस हो जाता और मुझे अपनी साड़ी मैं लिपटा  लेती और पूरी रात बिना चादर ठण्ड में सोई रहती लेकित मुझे ठण्ढ से बचाये रखती कभी-कभी मैं बिस्तर पर, ठण्ढ  के कारण बिस्तर पर पेशाब कर देता तो वह मुझे दूसरी तरफ  सुलाकर अपने खुद  पेशाब वाली जगह पर पूरी रात सोती रहती, मुझे याद है हमारे परिवार में उस समय एक  साल में एक बार परिवार के सभी सदस्य को नया कपड़ा बनता था. और ओ दिन सिवरात्र का दिन आता था।  उस दिन माँ सबको नए कपड़े बनवाती  थी. और अपने खुद वही पुराने कपड़े पहनती थी हम लोग जब बोलते, कि माँ आपने नए कपड़े क्यों नहीं बनवाया, तो क्या बोलती कि मेरे  बच्चे अच्छे से रहें अच्छे दिखे मेरा क्या है मैं तो वैसे ही खुश हूँ।

मेरे बच्चे ख़ुश रहे और मुझे क्या चाहिये। उस समय जब मेरी माँ  मुझे मेला देखने के लिए एक रूपये  देती तो मुझे ऐसा लगता जैसे कि मुझे कुबेर का खजाना मिल गया हो क्योंकि उस समय उस गरीब परिवार में मेरे लिए एक रुपया बहुत बड़ी रकम थी।

“माँ और क्षमा दोनों एक हैंक्यूंकि माफ़ करने में दोनों नेक हैं”

“मैं जो कुछ भी हूँ या होने की आशा रखता हूँ उसका श्रेय सिर्फ मेरी माँ को जाता है”

 माँ अपने बच्चों की ख़ुशी के लिए अपनी सारी खुशियाँ कुर्बान कर देती है पर उनपर किसी भी तरह की आँच नहीं आने देती कभी कभी मैं माँ से बचपन में नाराज़ हो जाता था।  पर आज मुझे मह्सुश होता है की माँ अपने बच्चों पर कभी नाराज नहीं होती ओ तो उसके प्यार जताने का एक अलग रूप होता है। कभी कभी माँ अपने बच्चों को उसकी गलती करने पर उसे डांट या मार भी देती है। पर उसके बाद जितना बच्चा रोता  है उससे कही ज्यादा माँ रोती है अपने बच्चे को मारने के बाद और थोड़ी देर बाद वह अपने बच्चे को सबकुछ भूला कर अपने गले लगा लेती है।  क्यूँकि माँ बच्चे से ज़्यादा देर तक नाराज़ रही नहीं सकती।

माँ अपने बच्चे को इसकदर प्या करती है की, बच्चा जब छोटा होता है और कहीं से खेलकर आता है माँ खाना खाती रहती है और अपने दूसरे हाथ से अपने साड़ी के पल्लू से बिना घ्रिडा किये बिना बेटे का नाक साफ करती है और खाना खाना स्टार्ट कर देती है एक माँ के लिए अपने बेटे के प्रति घ्रिडा नाम की कोई चीज़ नहीं होती। इस लिए कहते है. एक बेटे को भूलकर भी माँ का दिल नहीं दुखाना चाहिये। हमेशा उसके चरणों को चूंम कर आशीर्वाद लेना चाहिये। क्योंकि माँ के चरडों तले ज़न्नत रहती है।

“मैं जो कुछ भी हूँ या होने की आशा रखता हूँ उसका श्रेय सिर्फ मेरी माँ को जाता है””माँ की कोमल गोद ही दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह है”

“एक बात हमेशा याद रखना !मंदिर बनाना, मस्जिद बनाना, अनाथ आश्रम बनाना,अस्पताल बनाना, गुरुद्वारा बनाना, चर्च बनाना, स्कूल बनाना पर कभी वृद्धा आश्रम मत बनाना।अपने माता पिता को हमेशा दिल से लगाकर रखना।”

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